Wednesday, April 22, 2009

विवेचना जबलपुर का 15 वां राष्ट्रीय नाट्य समारोह विचारोत्तेजक नाटकों का समारोह

विवेचना जबलपुर का 15 वां राष्ट्रीय नाट्य समारोह
विचारोत्तेजक नाटकों का समारोह
विवेचना, जबलपुर का 15 वां राष्ट्रीय नाट्य समारोह विगत 5 नवंबर से 9 नवंबर 2008 आयोजित हुआ। इस समारोह ने अपनी निर्बाध निरंतरता से देश में एक अलग स्थान बनाया है। विवेचना के नाट्य समारोह में देश के सभी प्रमुख नाट्य निर्देशकों और नाट्य संस्थाओं ने अपने नाटकों के प्रदर्शन किये हैं। सर्वश्री हबीब तनवीर, बा.व.कारंत, बंसी कौल, सतीश आलेकर, देवेन्द्रराज अंकुर नादिरा बब्बर, दिनेश ठाकुर, दर्पण मिश्रा, उषा गांगुली, देवेन्द्र पेम, अरविंद गौड़, पियूष मिश्रा, रंजीत कपूर,, अनिलरंजन भौमिक, बलवंत ठाकुर, श्रीमती गुलबर्धन, अलखनंदन, लईक हुसैन, अशोक राही, विवेक मिश्र अजय कुमार, और वसंत काशीकर जैसे प्रमुख नाट्य निर्देशकों के नाटक पिछले 15 वर्षों में मंचित हुए हैं। 15 वर्षों में 78 नाटकों के मंचन हो चुके हैं। अनेक निर्देशकों ने एक से अधिक बार इस नाट्य समारोह में अपने नाटकों के मंचन किये हैं। इन नाटकों को हजारों दर्शकों ने देखा है। इन नाट्य समारोहों से एक बड़ा दर्शक वर्ग पैदा हुआ है जो हर नाटक को देखने की इच्छा रखता है। जबलपुर में आज विवेचना के राष्ट्रीय नाट्य समारोह के नाटकों को देखने के लिये प्रतिदिन आठ सौ दर्शक आते हैं। तरंग प्रेक्षागृह जहां ये नाटक होते हैं वो एक आलीशान एसी आॅडीटोरियम है जिसमें नाटक देखने और नाटक करने में सभी को संतोष मिलता है।
विवेचना ने इस बार मानव कौल को उनके दो नाटकों के साथ आमंत्रित किया था। 5 व 6 नवंबर को क्रमशः शक्कर के पंाच दाने और इल्हाम नाटकों का मंचन हुआ। शक्कर के पांच दाने एकल नाटक है जिसमें कुमुद मिश्रा का एकल अभिनय है। मानव कौल की नाट्य संस्था अरण्य द्वारा मानव कौल के द्वारा लिखे नाटकों का मंचन किया जाता है। शक्कर के पंाच दाने में राजकुमार नाम का पात्र इस दुनिया में जीने में अपने आपको असमर्थ पाता है। उसे यह दुनिया ही अजीब लगती है। नाटक में लेखक ने राजकुमार नाम के एक अनोखे चरित्र की रचना की है। उसकी मंा, उसका कवि चाचा, उसका ट्रक वाला दोस्त, उसका स्कूल हीरो रघु , बुजुर्ग राधे ही हैं जिनपर वो विश्वास कर पाता है। राजकुमार अपनी कहानी कहता है और साथ ही दुनिया में रहने वाले हर व्यक्ति और उसकी विशेषताओं और कमियों का जिक्र करता है। मानव कौल ने साहित्य, दर्शन और आध्यात्म के अध्ययन के दौरान जो पाया है उसे अपने नाटकों में पिरोया है। इसीलिये नाटक की बहुत सी बातें प्रभावित तो करती हैं पर किसी मंजिल पर नहीं पंहुचतीं। दोनों ही नाटक कहीं प्रयोगात्मक और एब्सर्ड हो जाते हैं। जब लेखक निर्देशक ही अपने कथ्य के बारे में स्पष्ट न हो तो दर्शक को क्या संप्रेषित हो सकता है? दोनों नाटक अंततः क्या कहना चाहते हैं वो स्पष्ट नहीं हो पाया। शक्कर के पांच दाने में कुमुद मिश्रा अपने चेहरे और आवाज के लोच से ज्यादा कह पाते हैं पर इल्हाम में उन्हें ये सुविधा भी नहीं मिली। नाटक संवाद और अभिनय का माध्यम तो है ही, ये निर्देशक के अपने विचारों का मंच भी है। मानव कौल इस मंच का बहुत न्यायपूर्ण इस्तेमाल इन नाटकों में नहीं कर पाये। दूसरा नाटक इल्हाम है। नाटक के नायक भगवान का,े जो एक बैंक में काम करने वाला सामान्य पारिवारिक आदमी है एक दिन पार्क में बैठे बैठे ज्ञान प्राप्त हो जाता है। वो अपनों को पहचान नहीं पाता। और अजीब अजीब बातें और हरकतें करता है जिससे बहुत मनोरंजक परंतु विचारणीय स्थितियों का निर्माण होता है। भगवान की बातें किसी की समझ में नहीं आतीं और लोगों की बातें भगवान की समझ में नहीं आतीं। नाटक के अंत में भगवान सामान्य हो जाता है। इल्हाम में प्रयोगात्मकता और अमूर्तता कुछ ज्यादा ही थी।
विवेचना के राष्ट्रीय नाट्य समारोह के तीसरे दिन अलखनंदन के निर्देशन में नटबंुदेले भोपाल ने रामेश्वर प्रेम के नाटक चारपाई का मंचन किया। चारपाई मध्यमवर्गीय परिवार की कहानी है जिसमें रिटायर्ड बूढे के लिये घर में रहने को भी जगह नहीं है। मां एक लाचार जीवन जीने को अभिशप्त है। लड़कों की अपनी समस्याएं हैं और बहुओं बच्चों की अपनी। नाटक में निर्देशक ने एक सतत उदासी, विषाद का निर्वहन किया है। प्रकाश बहुत सीमित रखा गया है। पूरा नाटक रात के अंधरे में चलता रहता है। नाटक में एक अजब सुस्ती का आलम है जो दर्शक को झुझला देता है। मां के रोल में बिशना चैहान ने कुछ अच्छा करने की कोशिश की जबकि पिता के रूप में जावेद जैदी केवल खानापूरी करते नजर आए। अन्य पात्र भी केवल मंच पर थे। मंच पर नाटक का सैट बहुत असुविधाजनक था और नाटक करने वालों की दिमागी उलझन को अभिव्यक्त कर रहा था। नाटक में बहुत अच्छे संगीत का इस्तेमाल किया गया जो नाटक से बिल्कुल बेमेल था।
चैथे दिन अस्मिता दिल्ली द्वारा अरविंद गौड़ के निर्देशन में अनसुनी का मंचन किया गया। अनसुनी उन लोगों की कहानी है जिनकी संख्या करोड़ों में है परंतु जिनकी आवाज अनसुनी है। यह नाटक हर्षमंदर के उपन्यास अनहर्ड वाइसेस पर आधारित है। इसमें पांच कहानियांे का मंचन है जिनमें हर कहानी किसी एक खास व्यक्ति और वर्ग का प्रतिनिधित्व करती है। कुष्ठ रोगी, साम्प्रदायिक दंगों को भुगतती एक महिला, सिर पर मैला ढोने वाली औरत, सड़कों पर पलते बच्चे और आदिवासी लोगों की समस्याओं को इस नाटक में आवाज दी गई है। नाटक में पांच छोटी छोटी कहानियांे को मंचित किया गया है। कहानियां बहुत छोटी होने से बहुत असरदार बन पड़ी हैं। हर कहानी के मंचन के बाद सूत्रधार न रखकर 28 नर्तकों के साथ एक सामयिक गीत बहुत आधुनिक तरीके से प्रस्तुत किया गया जिसका परिणाम ये हुआ कि नाटक दर्शकों द्वारा बहुत पसंद किया गया।
अंतिम दिन रविवार की सुबह 10 बजे अस्मिता के दूसरे नाटक आपरेशन थ्री स्टार का मंचन हुआ। सुबह ठीक दस बजे लगभग 600 दर्शक नाटक देखने आ चुके थे। ये इस बात का प्रदर्शन था कि दर्शकों में नाटक देखने के लिये कितना उत्साह है। इसके पूर्व भी तेरहवें राष्ट्रीय नाट्य समारोह में प्रातःकालीन मंचन आयोजित किया गया था जिसे बहुत पसंद किया गया था। आपरेशन थ्री स्टार डाॅरियो फो के नाटक एक्सीडेंटल डेथ आॅफ एन एनार्किस्ट का रूपांतर है। यह नाटक बहुमंचित हैं और पुलिस व कानून की कारगुजारियांे को बेनकाब करता है। नाटक में अरविंद गौड़ ने बहुत तेज गति रखी है। नाटक बहुत रोचक है। नाटक में लेखक ने दो अंत रखे हैं। नाटक का अंत बहुत कुछ कहता है। नाटक को सामयिक बनाने के लिये निर्देशक अरविंद गौड़ ने कुछ संवाद रखे हैं।
नाट्य समारोह के अंतिम दिन 9 नवंबर को शाम विवेचना ने अपना स्वयं का नाटक वसंत काशीकर के निर्देशन में मंचित किया। शाहिद अनवर के नाटक सूपना का सपना के इस प्रथम मंचन को दर्शकों ने पसंद किया। नाटक एक गांव की कहानी है जहां गांव के प्रमुख बाबू साहब एक कालकोष गाड़ने जा रहे हैं जिसमें उनके परिवार की जानकारी डाली जा रही है। गांव का भोला भाला युवक सूपना यह मांग कर बैठता है कि कालकोष में गांव के लोगों का विवरण भी डाला जाना चाहिये। इसी बात से तकरार शुरू होती है जो समाज में गैरबराबरी को अभिव्यक्त करती है। निर्देशक वसंत काशीकर ने नाटक में कसावट पर बहुत ध्यान रखा। नाटक में अंतर्निहित संदेश को बहुत रोचकता से संप्रेषित किया गया है। सूपना का सपना को समारोह को दर्शकों ने समारोह का सबसे अच्छा नाटक माना।
विवेचना का पन्द्रहवां राष्ट्रीय नाट्य समारोह विचारोत्तेजक नाटकों का समारोह रहा। नाटक का उद्घाटन जबलपुर जिले के कलेक्टर श्री हरिरंजन राव और म प्र वि मं के श्री संतोष तिवारी ने दीप जलाकर किया। शुरूआत में विवेचना के उपसचिव श्री बांकेबिहारी ब्यौहार ने नाट्य समारोह के आयोजन के बारे में बताया। विवेचना के सचिव श्री हिमंाशु राय ने देश में नाटकों की स्थिति और इस समारोह में नाटकों के चयन के संबंध में बताया। 15 वां राष्ट्रीय नाट्य समारोह विवेचना व केन्द्रीय क्रीड़ा व कला परिषद म प्र विद्युत मंडल का संयुक्त आयोजन था। विवेचना ने म प्र विद्युत मंडल के सहयोग के लिये आभार व्यक्त किया है। विवेचना ने जबलपुर शहर के दर्शकों और दानदाताओं का आभार व्यक्त किया।

1 comment:

  1. हिमांशु भाई
    विवेचना जबलपुर का 15 वां राष्ट्रीय नाट्य समारोह बेहद आकर्षक, प्रेरणास्पद और उत्साह वर्धक रहा .
    आप जैसे समर्पित लोग ही रंगमंच को ऐसी ऊंचाई दे सकते हैं.
    हम आपकी लगन, समर्पण और जबलपुर को रंगमंच के लिए केन्द्रीय भूमिका की और अग्रसर करने हेतु बधाई.

    - विजय तिवारी " किसलय "

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