Monday, April 27, 2009

विष्णु प्रभाकर


विगत 11 अपै्रल 2009 को वरिष्ठ साहित्यकार विष्णु प्रभाकर नहीं रहे। वे 97 वर्ष के थे। विष्णु प्रभाकर इप्टा के संरक्षक मंडल के सदस्य थे।
विष्णु प्रभाकर का जन्म 21 जून 1912 को उŸार प्रदेश के मुजफ्फरनगर जिले के मीरापुर गांव में हुआ था। उनके पिता दुर्गाप्रसाद एक धार्मिक व्यक्ति थे। उनकी माता महादेवी परिवार की पहली पढ़ी लिखी महिला थीं जिन्होंने अपने घर में पर्दा प्रथा खत्म कर दी थी। बारह वर्ष की आयु में प्राथमिक शिक्षा पूरी करने के बाद वे अपने मामा के घर हिसार चले गये। जहां उन्होंने मेट्रिक की पढ़ाई पूरी की। उसके बाद अठारह रूपये महीने पर सरकारी नौकरी शुरू की। इसी के साथ उन्होंने अपनी पढ़ाई जारी रखी और प्रभाकर, हिन्दी भूषण, प्रज्ञा की परीक्षााओं के साथ अंग्रेजी में बी ए किया।
साहित्य में उनकी अभिरूचि शुरू से थीं उन्होंने हिसार में एक नाट्य संस्था में काम किया और सन् 1939 में अपना पहला नाटक ’हत्या के बाद’ लिखा। सन् 1938 में उनका विवाह सुशीला प्रभाकर से हुआ जिन्होंने सन् 1980 में अपनी मृत्यु तक उनका साथ निभाया। उनके दो पुत्र और दो पुत्रियां हैं। उन्होंने सन् 1955 से 1957 तक आकाशवाणी नई दिल्ली में नाट्य निर्देशक के रूप में कार्य किया।
वे विष्णु नाम से लिखा करते थे। एक बार एक संपादक ने उनसे कहा कि इतने छोटे नाम से क्यों लिखा करते हो। तुमने कोई परीक्षा पास की है। उन्होंने कहा - प्रभाकर। तबसे उनका नाम विष्णु प्रभाकर हो गया।
विष्णु प्रभाकर को उनके उपन्यास अर्धनारीश्वर के लिये साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। उन्हें भारत सरकार के द्वारा पद्म भूषण से सम्मानित किया गया। सन् 2005 में एक बार उनका सम्मान तब चर्चा में आया जब वे राष्ट्रपति से मिलने गये थे और उन्हें रास्ते में रोक लिया गया था। उन्होंने तब यह सम्मान वापस करने की घोषणा की थी।
वे मुख्य रूप से कथा लेखक थे। परंतु उन्होंने कविता के अलावा सभी विधाओं में लिखा। वे पहले मुंशी प्रेमचंद के लेखन से प्रभावित थे। बाद में शरतचन्द्र से प्रभावित रहे। उन्होंने 14 वर्ष तक यात्राएं कर सामग्री एकत्र की और शरतचन्द्र पर अमर उपन्यास लिखा ’आवारा मसीहा’। शरतचन्द्र की जीवनी को उन्होंने आवारा मसीहा में उपन्यास शैली में लिखा है। अपने लेखन और जीवन में वे महात्मा गांधी से प्रभावित रहे। उनके 8 उपन्यास, 19 कहानी संग्रह, 12 नाटक, 13 जीवनियां और संस्मरण पुस्तकें, दो निंबध पुस्तकें, 23 बच्चों की किताबें, 4 यात्रा संस्मरण, 15 विविध विषयों पर लिखी पुस्तकें प्रकाशित हैं।
स्व विष्णु प्रभाकर इप्टा से शुरूआती दौर से जुड़े थे। सन् 1957 में जब इप्टा का राष्ट्रीय सम्मेलन दिल्ली में हुआ तो वे स्वागत समिति के कोषाध्यक्ष और सम्मेलन के प्रमुख कार्यकर्ता थे। वे इप्टा के संरक्षक मंडल के सदस्य थे। विगत वर्ष अपने हस्तलिखित पत्र द्वारा उन्होंने इप्टावार्ता को शुभकामनाएं दी थीं।
विष्णु प्रभाकर जी का दाह संस्कार नहीं हुआ क्योंकि मृत्यु से काफी पूर्व उन्होंने अपनी देह आल इंडिया इंस्टीट्यूट आफ मेडिकल साइंस (एम्स) को दान कर दी थी। उनकी मंशा के अनुसार उनकी देह मेडिकल छात्रों के अध्ययन के काम आएगी।
भारतीय जननाट्य संघ इप्टा इस महान लेखक को भावभीनी श्रद्धांजली अर्पित करती है।

2 comments:

  1. sun kar gahra aghaat pahucha hai. main swayam jamia IPTA ka sadasya hun aur gat 5 warson se rangmanch mein har bhumika me apne aap ko rakha hai.
    aap mujhe bataur writer invite karein to main bhi apni sanstha ka jikra samay smay par karta rahunga.
    waise apke rastravaadi lekhon ka swagat hai ..
    maine apko request bhej diya hai.. ummeed hai aapk hamse judenge..

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  2. हिमांशु भाई
    विष्णु प्रभाकर जी को हमारी भी विनम्र श्रद्धांजलि.
    - विजय - विजय तिवारी " किसलय "

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