Friday, November 20, 2009


दूसरे दिन 8 अक्टूबर 2009 को महमूद फ़ारूख़ी और दानिश हुसैन ने दास्तानगोई प्रस्तुत की। उर्दू में कथाकथन की पांच सौ साल पुरानी परंपरा है। इसे इन दो कलाकारों ने पुनरूज्जीवित किया है। शुरू में महमूद ने दर्शकों को बताया कि वो क्या प्रस्तुत करने जा रहे हैं। दास्तानगोई क्या है और उसका इतिहास क्या है ये बताया गया। बातचीत पूरी शुद्ध उर्दू में थी। दास्तानें शुरू हुईं तो दर्शकों को कुछ समय लगा इस फ़न से जुड़ने में। थोड़ी देर बाद दर्शक और कलाकारों के बीच एक संबंध सेतु बन गया और फिर दर्शकों ने दास्तानों का पूरा आस्वाद लिया। अंतिम दास्तान 1947 के बंटवारे से संबंधित था। इससे दर्शकों ने बहुत जुड़ाव महसूस किया। दास्तानें केवल दास्तानें न रह कर एक पूरा संदेश बन गईं भाइ्र्र्रचारे का, सर्वधर्मसद्भाव का। धर्मान्धता और संकीर्णता पर दोनों कलाकारों ने बहुत समझदारी से तीखा व्यंग्य किया।

तीसरे दिन 9 अक्टूबर 2009 को रंगविदूषक, भोपाल के कलाकारों ने बंसी कौल के निर्देशन में ’तुक्के पे तुक्का’ का मंचन किया। यह नाटक करीब 15 वर्षों से हो रहा है और इसके मंचन देश और दुनिया के अनेक देशों में हुए हैं। यह एक चीनी लोककथा पर आधारित है। इस नाटक को राजेश जोशी और बंसी कौल ने लिखा है। बंसी जी के नाटकों की अपनी विशिष्टता है। रंगीन लाइट्स, रंगीन वेशभूषा, विदूषकों से रंगीन मेकअप वैसे भी दर्शकों को अच्छा लगता है। फिर कहानी को कहने के लिये ये विदूषक कलाकार सर्कसनुमा कम्पोजिशंस बनाते हैं। नाटक और मंच पर पूरे समय गति बनी रहती है। तुक्के पे तुक्का का नायक तुक्कू है जो गांव का एक चतुर युवक है जिसकी पढ़ाई लिखाई में कोई रूचि नहीं है पर वो चतुर है। वो शहर आकर राजा का चहेता बन जाता है और फिर अंततः घटनाक्रम ऐसा चलता है कि वो सुल्तान बन जाता है। नाटक में डिज़ायन कथ्य पर बहुत ज्यादा हावी दिखाई पड़ता है। नाटक की असली उपलब्धि अंजना पुरी का गायन है जो नाटक को बहुत ऊंचा उठाता है।

नाट्य समारोह के चैथे दिन 10 अक्टूबर 2009 को दिल्ली के पिरोज ट्रुप द्वारा ’मिर्जा ग़ालिब’ का मंचन किया गया। इसमें मिर्जा गालिब का किरदार प्रसिद्ध फिल्म अभिनेता टाॅम आॅल्टर ने निभाया। यह नाटक मिर्ज़ा ग़ालिब की जीवनी बयान करता है। हाली को मिर्ज़ा ग़ालिब अपनी आत्मकथा लिखवाते हैं और इसी दौरान मंच पर घटनाएं प्रदर्शित होती जाती हैं। लगभग दो घंटे के इस नाटक में ग़ालिब के जीवन को परत दर परत सामने लाया गया हैं। ग़ालिब के जीवन की अच्छी बुरी सभी घटनाओं को नाटक में दिखाया गया है। नाटक में टाॅम आॅल्टर ने अपनी अदाकारी से दर्शकों को बहुत प्रभावित किया। नाटक में गति बहुत कम थी और अनेक कलाकारों का अभिनय अभी कड़ी मेहनत की मंाग करता है। नाटक की अवधि में काफी कटौती की जा सकती है। नाटक में मुशायरे के दृश्य एक शोर में तब्दील हो जाते हैं और उसमें ग़ालिब और उनका कलाम कहीं गुम हो जाता है।

नाट्य समारोह के अंतिम दिन 11 अक्टूबर को दिल्ली के दि एन्टरटेनर्स ने रंजीत कपूर के निर्देशन में ’अफ़वाह’ का मंचन किया। शहर के डिप्टी मेयर वीरेन्द्र नागपाल और कविता नागपाल अपनी शादी की दसवीं सालगिरह पर एक पार्टी देते हैं। इस पार्टी में पंहुचने वाले मेहमान एक अजीब मुसीबत में फंस जाते हैं जब वे पाते हैं कि उनका मेजबान खुद की चलाई गोली का शिकार हो गया है। उसकी पत्नि फरार हो चुकी है। राजेन्द्र वीरेन्द्र का वकील है इसीलिए वह इस घटना को छुपाने की कसरत शुरू करता है और शुरू होता हैै मनोरंजक घटनाओं, ग़लतफ़हमियों का लंबा सिलसिला। नाटक के मध्य तक तेज गति बनाए रखी गई और दर्शकों ने खूब मजा लिया। नाटक के संवाद मनोरंजक हैं। नाटक के दूसरे हिस्से में नाटक की लंबाई उबाऊ लगने लगती है और नाटक की गति भी धीमी हो जाती हैं। नाटक में बाद में काफी दोहराव होते हैं। नाटक में सुमन अग्रवाल, अश्विन चड्डा, पूनम गिरधानी, हेमंत मिश्रा, रूमा घोष, अमिताभ श्रीवास्तव, मुक्ता सिंह, वामिक अब्बासी, शैलेन्द्र जैन और तबस्सुम ने बहुत अच्छा अभिनय किया। नाटक ने दर्शकों को आनंदित किया।
विवेचना के सोलहवें नाट्य समारोह में हर नाटक में एक स्वस्थ संदेश था। जबलपुर में परंपरा बन चुके इस समारोह का सफल समापन लगभग एक हजार दर्शकों की उपस्थिति में हुआ। विवेचना के इस समारोह में जहां मध्यप्रदेश के विभिन्न जिलों से रंगकर्मी नाटकों को देखने आए वहीं नाट्य समारोह के आयोजन का साक्षी बने अजित राय, संगम पांडेय और शिवकेश। नाट्य समारोह के अंत में विवेचना के सचिव हिमांशु राय और बांके बिहारी ब्यौहार व म प्र वि मंडल की ओर से श्री संतोष तिवारी ने सभी सहयोगियों, कार्यकर्ताओं और दर्शकों का आभार व्यक्त किया।

Saturday, September 26, 2009

विवेचना का सोलहवां राष्ट्रीय नाट्य समारोह

विवेचना का सोलहवां राष्ट्रीय नाट्य समारोह 07 से 11 अक्टूबर तक
पांच श्रेष्ठ नाटकों का मंचन होगा
जबलपुर में परम्परा बन चुके विवेचना के राष्ट्रीय नाट्य समारोह का आयोजन इस वर्ष अक्टूबर माह में होने जा रहा है। इस आयोजन का यह सोलहवां वर्ष है। अब तक यह देश का अकेला आयोजन है जिसे अशासकीय तौर पर आयोजित किया जाता है और सन् 1994 से निरंतर आयोजित हो रहा है। जबलपुर के इस आयोजन की चर्चा अब पूरे देश में है और सभी निर्देशक व नाट्य संस्थाएं इसमें हिस्सेदारी करना चाहती हैं। विवेचना की इस समारोह श्रृखंला में सर्वश्री स्व. बा व कारंत, हबीब तनवीर, बंसी कौल, सतीश आलेकर, देवेन्द्रराज अंकुर, बलवंत ठाकुर, नादिरा बब्बर, उषा गांगुली, रंजीत कपूर, अरविंद गौड़ आदि वरिष्ठ नाट्य निर्देशकों के साथ ही इलाहाबाद, पटना, भोपाल, रायगढ़, भिलाई, उज्जैन आदि शहरों की नाट्य संस्थााओं के नाटकांें के मंचन हुए हैं। विवेचना का सोलहवां राष्ट्रीय नाट्य समारोह मध्यप्रदेश राज्य विद्युत मंडल केन्द्रीय क्रीड़ा व कला परिषद व विवेचना का संयुक्त आयोजन है। यह समारोह तरंग प्रेक्षागृह, रामपुर में आयोजित होगा। इस वर्ष पांच दिवसीय समारोह में पांच नाटक मंचित होंगे।
विवेचना का सोलहवां राष्ट्रीय नाट्य समारोह 07 अक्टूबर से 11 अक्टूबर 2009 तक आयोजित है। ेविवेचना के राष्ट्रीय नाट्य समारोह की तैयारियां प्रारंभ कर दी गई हैं। प्रथम दिन 7 अक्टूबर 2009 बुधवार को ’विवेचना’ जबलपुर के द्वारा मित्र नाटक मंचित किया जायेगा। डा शिरीष आठवले लिखित इस रोचक और भावनापूर्ण नाटक का निर्देशन वसंत काशीकर ने किया है। दूसरे दिन 8 अक्टूबर 2009 को महमूद फ़ारूखी के निर्देशन में दास्तानगोई मंचित किया जायेगा। उत्तर भारत में उर्दू में कथाकथन की पांच सौ साल पुरानी परंपरा है। दास्तानगोई में इसी फन का मुजाहरा किया गया है। 9 अक्टूबर को प्रसिद्ध निर्देशक बंसी कौल ,भोपाल के नाटक तुक्के पे तुक्का का मंचन होगा। यह नाटक अपने मजेदार प्रस्तुति के लिए चर्चित है। चैथे दिन 10 अक्टूबर को डा एम सईद आलम दिल्ली के निर्देशन में मिर्जा गालिब नाटक मंचित होगा। इस नाटक में प्रमुख भूमिका टाॅम आल्टर निबाहेंगे। इस नाटक के दुनिया भर में मंचन सराहे गये हैं। अंतिम दिन 11 अक्टूबर रविवार को रंजीत कपूर के निर्देशन में अफ़वाह नाटक का मंचन होगा। यह एक मनोरंजक नाटक है जिसमें मंच पर दो मंजिला सैट लगाया जाएगा। इस नाट्य समारोह में आमंत्रित दास्तानगोई, मिर्जा गालिब और अफवाह नाटकों के मंचन दुनिया भर में हुए हैं। इस समारोह में रंग प्रदर्शनी, रंगसंगोष्ठी, व रंगसंगीत का आयोजन भी होगा। नाट्य समारोह को कवर करने के लिए दिल्ली और मुम्बई से कला समीक्षक जबलपुर आ रहे हैं।
विवेचना के राष्ट्रीय नाट्य समारोह की तैयारियां जोर शोर से जारी हैं। विवेचना के हिमांशु राय बांके बिहारी ब्यौहार, वसंत काशीकर, अनिल श्रीवास्तव, संजय गर्ग, सीताराम सोनी आदि ने सभी दर्शकों और शुभचिंतकांे से हमेशा की तरह नाट्य समारोह में सकिय भागीदारी का अनुरोध किया है।

Saturday, May 16, 2009

गुलाम अली मजबूर का निधन
कश्मीर के प्रसिद्ध रंगमंच निर्देशक, कलाकार और लेखक गुलाम अली मजबूर का 15 मई को लंबी बीमारी के बाद निधन हो गया। श्री मजबूर ( 57 ) कश्मीरी लोक रंगमंच के अग्रणी कलाकार थे। उन्हांने 200 से अधिक नाटकों का निर्देशन किया और आकाशवाणी, दूरदर्शन और जम्मू कश्मीर के कला संस्कृति और भाषा अकादमी के ग्रेड के कलाकार रहे। कश्मीरी लोक रंगमंच और अभिनय कला को प्रोत्साहन देने वाले मजबूर को केन्द्रीय सूचना प्रसारण मंत्रालय, भारत सरकार, राज्य कला, संस्कृति, एवं भाषा अकादमी, कश्मीर विश्वविद्यालय और जम्मू कश्मीर सरकार के शिक्षा विभाग ने पुरस्कृत और सम्मानित किया था। एक लेखक के रूप में उन्होंने पचास से अधिक नाटकों की रचना की और कश्मीरी साहित्य और भाषा के लिये अनेक लेख लिखे। स्तंभ लेखक के रूप में वे दैनिक, साप्ताहिक, पाक्षिक और मासिक समाचार पत्रों और पत्रिकाओं से जुड़े रहे। श्री मजबूर कश्मीर के अग्रणी रंगमंच समूह राष्ट्रीय भांड रंगमंच के संस्थापक सदस्य थे।
हबीब तनवीर अब स्वस्थ
देश के वरिष्ठ रंगकर्मी हबीब तनवीर विगत सप्ताह अस्पताल में भरती रहे। वे गंभीर रूप से बीमार थे। उन्हें साँस लेने में तकलीफ हो रही थी। हालत बिगड़ती देख उन्हें वेंटिलेटर पर रखा गया। एक सप्ताह में उनकी बीमारी पर काबू पा लिया गया। हबीब साहब अब खतरे से बाहर हैं। उनकी बीमारी को लेकर देश के रंगकर्मी चिंतित थे। भोपाल में सभी कलाकार और साहित्यकार बुद्धिजीवी लगातार उनकी तबियत का हालचाल लेते रहे।
विवेचना, जबलपुर का थियेटर वर्कशाप
विवेचना जबलपुर का थियेटर वर्कशाप आगामी 13 जून से 12 जुलाई 2009 तक आयोजित है। यह वर्कशाप राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय नई दिल्ली के सहयोग से आयोजित है। इस कार्यशाला का निर्देशन सुप्रसिद्ध अभिनेता निर्देशक श्री सुनील सिन्हा करेंगे। वर्कशाप 16 वर्ष से अघिक आयु के युवाओं के लिये है। वर्कशाप में नाटक के सभी पक्षों की जानकारी प्रशिक्षण दिया जायेगा। व्यायाम, तकनीकी विषयों आदि के लिये दो विषय विशेषज्ञ अलग से आयेंगे। श्री सुनील सिन्हा ने अनेक नाटकों का निर्देशन किया है और शेर अफगन जैसे नाटकों में अपने श्रेष्ठ अभिनय के लिये जाने जाते हैं। उन्होंने अनेक फिल्मों और टी वी सीरियल्स में स्मरणीय अभिनय किया है। उल्लेखनीय है कि सुनील सिन्हा विगत वर्ष जबलपुर में विवेचना, जबलपुर द्वारा आयोजित नाट्य कार्यशाला का निर्देशन कर चुके हैं।

Thursday, May 7, 2009

आगस्टो बोएल का निधन

रियो डी जनेरियो। अपनी अनोखी शैली के लिए विख्यात ब्राजीली रंगमंच निर्देशक और पटकथा लेखक अगस्टो बोएल का 78 साल की उम्र में निधन हो गया। रियो के अस्पताल समारितानो में लंबे समय से ल्यूकेमिया से पीड़ित बोएल का निधन 2 मई 2009 को सांस में परेशानी के बाद निधन हुआ। कोलंबिया विश्वविद्यालय से रंगमंच कला अध्ययन करने वाले बोएल ने 60 के दशक में पटकथा लेखक निर्देशक और अभिनेताओं के श्रोताओं से संवाद के लिए ’थियेटर आॅफ आप्रेस्ड’ बनाया था। सन् 1964 से 1985 के बीच ब्राजील के तानाशाही शासन ने उन्हें देश से निष्कासित कर दिया था।
विश्व रंगमंच दिवस 27 मार्च को इंटरनेशनल थियेटर इंस्टीट्यूट यूनेस्को द्वारा जो अन्तर्राष्ट्रीय संदेश जारी किया जाता है इस वर्ष 2009 के लिए यह संदेश आॅगस्टो बोएल द्वारा दिया गया था।

एकजुट का बच्चों का बच्चों का थियेटर वर्कशाॅप
एकजुट, मुम्बई द्वारा 7 से 14 वर्ष के बच्चों के लिए मुम्बई में बांद्रा और लोखंडवाला में दो वर्कशाप 8 से 17 मई 2009 तक आयोजित हैं। इस 10 दिवसीय वर्कशाॅप में बच्चों व किशोरों को अभिनय, कथाकथन, थियेटर गेम्स, संवाद अदायगी, शब्द उच्चारण, चरित्र निर्माण, इम्प्रोवाइजेशन, संगीत व नृत्य का प्रशिक्षण दिया जायेगा। इस वर्कशाप में शामिल होने के लिए मोबाइल नं 9323738846 पर संपर्क किया जा सकता है।
लोहाकुट
बलवंत गार्गी के नाटक ’लोहाकुट’ का मंचन लिटिल थेस्पियन, कोलकाता द्वारा 6 मई 2009 को शिशिर मंच कोलकाता में किया गया। परिकल्पना व निर्देशन एस एम अज़हर आलम का था। यह कहानी 1944 में लिखी गई थी। इस नाटक में एक ग्रामीण महिला 18 साल के प्रेमविहीन वैवाहिक जीवन के बाद अपने पति को छोड़कर युवावस्था के प्रेमी के साथ जाने का फैसला करती है। इस निर्णय में उसकी लड़की का भी योगदान होता है जो पिता द्वारा तय गई पारंपरिक शादी तोड़कर अपने प्रेमी के साथ भाग जाती है। नाटक में जीवन की निर्मम सचाई और यथार्थ को प्रदर्शित किया गया है।
पुस्तक प्रदर्शनी
केन्द्रीय संगीत नाटक अकादमी, नई दिल्ली द्वारा मेघदूत रंगशाला, रवीन्द्रभवन नई दिल्ली में प्रदर्शनकारी कलाओं पर पुस्तक प्रदर्शनी व विक्रय आयोजित हुई। प्रदर्शनी 6 मई तक जारी रही।
अस्मिता, दिल्ली की कार्यशाला
अस्मिता, दिल्ली ने हैबीटैट वल्र्ड, इंडिया हैबिटैट वल्र्ड, नई दिल्ली में 9 मई से 5 जून 2009 तक एक थियेटर वर्कशाप का आयोजन किया है। इसमें 15 वर्ष से ऊपर के बच्चे और युवा शामिल हो सकते हैं। अभिनय पर केन्द्रित इस कार्यशाला का निर्देशन श्री अरविंद गौड़ करेंगे।
जंगलधूम डाट काम
एकजुट, मुम्बई द्वारा 1 मई को हार्नीमन सर्किल गार्डन, मुम्बई में बच्चों का नाटक ’जंगलधूम डाट काम का मंचन किया गया। हरियाला जंगल में एक नन्हीं कोयल रहती है जिसे उसकी मां स्वार्थवश एक कौवे के घोंसले में छोड़कर चली जाती है। कौवे की मां कागी नन्हीं कोयल सरगम की देखभाल करती है और उसे पालती पोसती है। बाजबहादुर जो जंगल का राजा है एक गायन प्रतियोगिता का आयोजन करता है। कागी सरगम को इस प्रतियोगिता में भाग लेने के लिये प्रोत्साहित करती है। सरगम इस प्रतियोगिता को जीत लेती है। बुराई पर अच्छाई की विजय होती है।
नाटक क्षिप्रा शुक्ला ने लिखा है। नाटक का निर्देशन नादिरा बब्बर ने किया है।
पतझड़
डा एस एम अजहर आलम के निर्देशन में लिटिल थेस्पियन, कोलकाता ने 30 अप्रैल 2009 को ’पतझड़’ नाटक का प्रथम मंचन किया। यह नाटक टेनेसी विलियम्स की कथा पर आधारित है। यह एक परिवार की कहानी है जिसमें मां गायत्री, पुत्र इंदीवर और अपाहिज लड़की यामिनी है। यामिनी के मन में पति के रूप में एक टेलिफोन कंपनी में काम करने वाले नौजवान की कल्पना है। गायत्री चाहती है कि उसके बच्चे अच्छे से रहें। वो इंदीवर को यामिनी के लिये लड़का तलाश करने के लिये कहती रहती है। एक दिन एक लडका आता है जो बहुत अच्छा व्यवहार करता है। गायत्री को उम्मीद है कि वो यामिनी से शादी कर लेगा। लेकिन वो बताता है कि उसकी सगाई हो चुकी है। गायत्री के जीवन में जैसे पतझड़ आ
जाता है।
कागज के पक्षी
बैकस्टेज, इलाहाबाद ने प्रवीण शेखर के निर्देशन में ’कागज के पक्षी’ का मंचन 27 अपै्रल 2009 को किया। इसका रूपांतर देवेन्द्र प्रकाश सिंह ने किया है। यह एक जापानी लड़की सडाको की कहानी है जो 2 साल की थी जब हिरोशिमा पर बम गिराया गया। जब सडाको 12 साल की हुई तब पता चला कि अणुबम के दुष्प्रभाव से उसे ल्यूकेमिया हो गया है। उसकी मौत करीब है। उसे बताया गया कि जापानी लोकश्रुति के अनुसार यदि वह एक हजार कागज के पक्षी बनायेगी तो वह बच जायेगी। परंतु एक दिन जब वह 644 पक्षी ही बना पाई थी उसकी मृत्यु हो गई उसके साथी बच्चों ने उसके बाकी कागज के पक्षी बनाये। सडाको की याद में एक स्मारक बनाया गया है।
पेंसिल से ब्रश तक
25 व 26 अप्रैल 2009 को एकजुट, मुम्बई द्वारा पृथ्वी थियेटर में अपने प्रसिद्ध नाटक ’पेंसिल से ब्रश तक’ का मंचन किया गया। यह नाटक सुप्रसिद्ध चित्रकार मकबूल फिदा हुसैन के जीवन पर आधारित है। इसका निर्देशन नादिरा बब्बर ने किया है। इसमे टाॅम आल्टर प्रमुख भूमिका में हैं। यह नाटक 18 व 19 अप्रैल 2009 को एनसीपीए मुम्बई में मंचित हुआ। जबकि 16 व 17 अपै्रल 2009 को नादिरा बब्बर अभिनीत व निर्देशित नाटक ’बेगम जान’ का मंचन एनसीपीए में हुआ। यह गुजरे जमाने की शास्त्रीय गायिका की कहानी है।