Friday, November 20, 2009


तीसरे दिन 9 अक्टूबर 2009 को रंगविदूषक, भोपाल के कलाकारों ने बंसी कौल के निर्देशन में ’तुक्के पे तुक्का’ का मंचन किया। यह नाटक करीब 15 वर्षों से हो रहा है और इसके मंचन देश और दुनिया के अनेक देशों में हुए हैं। यह एक चीनी लोककथा पर आधारित है। इस नाटक को राजेश जोशी और बंसी कौल ने लिखा है। बंसी जी के नाटकों की अपनी विशिष्टता है। रंगीन लाइट्स, रंगीन वेशभूषा, विदूषकों से रंगीन मेकअप वैसे भी दर्शकों को अच्छा लगता है। फिर कहानी को कहने के लिये ये विदूषक कलाकार सर्कसनुमा कम्पोजिशंस बनाते हैं। नाटक और मंच पर पूरे समय गति बनी रहती है। तुक्के पे तुक्का का नायक तुक्कू है जो गांव का एक चतुर युवक है जिसकी पढ़ाई लिखाई में कोई रूचि नहीं है पर वो चतुर है। वो शहर आकर राजा का चहेता बन जाता है और फिर अंततः घटनाक्रम ऐसा चलता है कि वो सुल्तान बन जाता है। नाटक में डिज़ायन कथ्य पर बहुत ज्यादा हावी दिखाई पड़ता है। नाटक की असली उपलब्धि अंजना पुरी का गायन है जो नाटक को बहुत ऊंचा उठाता है।