Friday, November 20, 2009


विवेचना का सोलहवां राष्ट्रीय नाट्य समारोह 7 अक्टूबर को ’मित्र’ नाटक के मंचन के साथ शुरू हुआ। इसका निर्देशन व प्रमुख भूमिका वसंत काशीकर ने निबाही। यह नाटक डा शिरीष आठवले ने लिखा है। यह एक ऐसे बुजुर्ग की कहानी है जिसे एक झगड़े में लगी चोटों के इलाज के समय लकवा जैसी बीमारी हो जाती है। इसके इलाज के लिए एक नर्स रखी जाती है जिससे दादा साहब बहुत चिढते हैं। नर्स सावित्री बाई रूपवते अपना काम करती है। धीरे धीरे दादा साहेब सामान्य होने लगते हैं। दादा साहब की लड़की उन्हें अमेरिका ले जाना चाहती है पर वे जाना नहीं चाहते। उसके लिए वे नर्स की मदद से अतिरिक्त मेहनत करते हैं और लगभग पूरी तरह ठीक हो जाते हैं। लड़की को विश्वास नहीं होता और वो उन्हें फिर भी अमेरिका ले जाना चाहती है। डाक्टर समझाता है कि ये चमत्कार दादासाहेब की इच्छा शक्ति का परिणाम है। मित्र नाटक मानवीय संबंधों को बहुत बारीकी से रेशा रेशा अलग करता है। दादा साहब पुरोहित और सावित्री बाई रूपवते के संबंध एक मरीज और नर्स के हैं। मगर बार बार ये संकेत देते हैं कि कुछ और भी हो सकता है। नाटककार ने सावित्री बाई रूपवते के रूप में एक अद्भुत आदर्श चरित्र विकसित किया है। नाटक में पिता पुत्री पिता पुत्र और पति पत्नी के संबंधों के अलग अलग रंग उभर कर आते हैं। लड़की के रोल में उदिता चक्रवर्ती, डा के रूप में संजय गर्ग, पुत्र के रूप में अभिषेक काशीकर ने सहज अभिनय किया है। नाटक मानवीय संबंधों के आदर्शांे को स्थापित करने में सफल है। विवेचना की यह प्रस्तुति बहुत पसंद की गई।