Friday, November 20, 2009

विवेचना,जबलपुर का सोलहवां राष्ट्रीय नाट्य समारोह

रोचक नाटकों का सफल समारोह
विवेचना मध्यप्रदेश के जबलपुर शहर में काम करने वाली विख्यात संस्था है। विवेचना का गठन स्व हरिशंकर परसाई व उनके साथी बुद्धिजीवियों ने सन् 1961 में किया था। तब इसका उद्देश्य ज्वलंत मुद्दों व समस्याओं पर विचार गोष्ठियों का आयोजन करना था ताकि सच्चाई लोगों के सामने आए। आम जन सही तथ्यों को जानें और अपने स्वयं के विवेक व तर्क से निर्णय लें। सन् 1975 से विवेचना के नाट्य दल ने काम करना शुरू किया। तब से आज तक हर साल एक या दो नए नाटक और उनके मंचन, नाट्य कार्यशालाएं,बच्चों के शिविर आदि सभी कुछ निरंतर जारी है। विवेचना के नाटक देश के प्रतिष्ठित मंचों पर हुए हैं और बहुत सराहे गये हैं।
सन् 1994 से विवेचना द्वारा राष्टीय नाट्य समारोह का आयोजन शुरू किया गया। पहले साल का पहला दिन हबीब तनवीर जी के नाम रहा। उन्होंने ही नाट्य समारोह का उद्घाटन किया और देख रहे हैं नैन का शो किया। दूसरे दिन बंसी कौल, तीसरे दिन बा व कारंत और चैथे दिन सतीश आलेकर के नाटक मंचित हुए। इतनी मजबूत बुनियाद के साथ शुरू हुए विवेचना के राष्ट्रीय नाट्य समारोहों में अब तक देश के प्रमुख नाट्य निर्देशकों और नाट्य संस्थाओं व संस्थानों के नाटक मंचित हुए हैं। सर्वश्री हबीब तनवीर, बा.व.कारंत, बंसी कौल, सतीश आलेकर, देवेन्द्रराज अंकुर नादिरा बब्बर, दिनेश ठाकुर, दर्पण मिश्रा, उषा गांगुली, देवेन्द्र पेम, अरविंद गौड़, पियूष मिश्रा, रंजीत कपूर,, अनिलरंजन भौमिक, बलवंत ठाकुर, श्रीमती गुलबर्धन, अलखनंदन, लईक हुसैन, अशोक राही, विवेक मिश्र अजय कुमार, मानव कौल और वसंत काशीकर आदि द्वारा निर्देशित नाटक विवेचना के विगत समारोहों में मंचित हो चुके हैं। विवेचना के रा न समारोह में देश के अधिकांश प्रसिद्ध निर्देशक व नाट्य संस्थाएं शिरकत कर चुकी हैं।
विवेचना का रानास अब हर वर्ष दशहरे और दीपावली के बीच सप्ताह में बुधवार से रविवार तक आयोजित होता है। इस पांच दिनी समारोह में प्रायः 6 या 7 नाटक मंचित होते हैं। अब तक लगभग सौ नाटक मंचित हो चुके हैं। जबलपुर में विवेचना के रा ना स का एक बड़ा दर्शक वर्ग तैयार हुआ है। विवेचना का रा ना स शहर से कुछ बाहर की ओर स्थित म प्र वि मं के तरंग ए सी आॅडीटोरियम में आयोजित होता है। फिर भी नाटक शुरू होने से पहले पूरा हाॅल भर जाता है। बाहर कारों मोटर साइकिलों की कतार लग जाती है। ना समारोह के लिए टिकिट बेचना अब कोई समस्या नहीं है और न दर्शकों की संख्या की चिन्ता करना होती है। अंतिम दो दिनों में पचासों दर्शकोे को सीट के अभाव में वापस जाना होता है।
नाटक के प्रचार के लिये अखबार में एक समाचार ही पर्याप्त होता है जिसे साल भर इंतजार कर रहे दर्शक एक नजर में पढ़कर अपना कार्यक्रम तय कर लेते हैं। शहर में बैनर और आकर्षक पोस्टरों के माध्यम से भी दर्शकों को सूचना दी जाती है। इसके बाद दर्शक एक दूसरे को सूचना देना शुरू कर देते हैं और पूरे शहर में नाट्य समारोह देखने का एक माहौल बन जाता है। ये शहर की एक ऐसी गतिविधि बन चुकी है जिसमें जाना प्रतिष्ठा का प्रश्न है। और जो न गया हो उसके लिए हीनताबोध का।