Friday, November 20, 2009


कजगांव में वामिक की कब्र पर फूल चढ़ाते हुए हम बार-बार वामिक की वसीयत को याद कर रहे थे। वहाँ से हम पहुँचे ‘लाल कोठी’।
वामिक की मषहूर ‘लाल कोठी’ आज भी खानदानी सामंती रौब का परिचय देती है लेकिन सामंतवादी जुल्मों को देखकर ही सामंत घराने में पैदा हुए वामिक एक विद्रोही षायर बने। उसी लाल कोठी में चल रहे स्कूल के सैकड़ों बच्चे कजगांव के सैकड़ों स्त्री-पुरूष और खुद वामिक के बड़े सुपुत्र वामिक के क्रान्तिकारी व्यक्तित्व के बारे में समझने की चेष्टा कर रहे थे। वामिक के सुपुत्र श्री एस. एम. जैदी ने टिप्पणी की-मैं तो वामिक की सम्पत्ति का वारिस हूँ लेकिन आज मुझे सचमुच वामिक के असली बड़प्पन का पता लगा। समापन कार्यक्रम में बोलते हुए जनसंस्कृति मंच के राष्ट्रीय महामंत्री प्रणय कृष्ण ने कहा कि भूमंडलीकरण के इस हमलावर दौर में वामिक हमें हमारे कत्र्तव्यों की याद दिलाते हैं। इंकलाब का सपना कितना भी अधूरा हो वामिक हमें उस ओर बढ़ने का रास्ता दिखाते हैं और इस रास्ते की पहली कड़ी है वामपंथी प्रगतिषील ताकतों की एकता।
सभा को इप्टा के राष्ट्रीय महामंत्री जितेन्द्र रघुवंषी और भाकपा के प्रान्तीय सचिव डाॅ गिरीष ने भी सम्बोधित किया। समापन समारोह की अध्यक्षता प्रगतिषील लेखक संघ से जुडे़ जाने माने लेखक षकील सिद्दीकी ने की। धन्यवाद ज्ञापन भाकपा जौनपुर के महासचिव जयप्रकाष सिंह ने दिया। इस समूची यात्रा की परिकल्पना में इप्टा के प्रान्तीय सचिव मुख्तार अहमद और षहजाद रिजवी नेे अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका निभायी। यात्रा में षामिल कलाकारों, भाकपा के समर्पित कार्यकर्ताओं के अथक परिश्रम से ही यह सांस्कृतिक यात्रा संभव हो सकी। संस्कृतिकर्मियों और कामगारों के बीच लगातार सम्वाद और सहयोग से ही जनसंस्कृति की रक्षा संभव है।
लाल कोठी के प्रांगण मंे जहाँ आजमगढ़ इप्टा के लोक कलाकारों ने माटी की सुगंध बिखेरी वहीं इप्टा आगरा ने यहाँ अपना नाटक ‘सात जूते’ प्रस्तुत किया और इप्टा लखनऊ ने चेखव की कहानी पर आधारित नाटक गिरगिट। साथ ही चन्द मिनटों में ही इप्टा के राष्ट्रीय महामंत्री जितेन्द्र रघुवंषी ने लाल कोठी में चल रहे स्कूल के बच्चों से भी एक गीत पर अभिनय कराकर बच्चों को भी यात्रा से जोड़ा। सांस्कृतिक कार्यक्रम का समापन बैजनाथ यादव और जितेन्द्र हरि पांडे के ‘जोगीरा गायन के साथ हुआ। लम्बे समय तक लाल कोठी में यह आवाज गूँजती रहेगीः-
यह अजीब तरह का दौर है
मगर अपनी रौ भी कुछ और है
मेरी उम्र काबिले गौर है
मैं चला हूँ जैसे जबाँ चले
जाहिर है षायर जब खुद से सम्बोधित होता है तो खुद से नहीं जमानेसे सम्बोधित होता है। समूचे वामपंथी आन्दोलन की उम्र को लक्ष्य करके ही वामिक ने षायद यह आह्वान किया कि समाज बदलने वाले आन्दोलन को खुद भी नौजवान की तरह चलना होगा और नौजवानों से जुड़ना होगा।